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सफलता के आधार


                         
                     
        
    सफलता के आधार  

               'सकल्प कीजिए और उस पर पूर्ण 
                    निष्ठा से निरंतर आचरण कीजिये, 
                    आप पायेंगे कि सब कुछ संभाल है। 

                                                        -मोराबी
जागरूकता:
   आप और दुनिया एक हैं, यह जान लेना ही
जागरूकता है। आप जो चाहते हैं वही दुनिया भी
चाहती है। यह तभी सत्य हो सकता है, जब आप
इसमें विश्वास करें। अगर आप जागरूकता के सही
तरीकों का पालन करेंगे, तो यह दुनिया भी आपकी
योजनाओं को पूरा करने में मदद करेगी। भगवान हमें
सपने देता है, किंतु यह आपका उत्तरदायित्व है कि
आप इन्हें देखें और साकार करें। यह तय कर लें कि
आपका सपना बड़ा है। यहां एक वास्तविक जिंदगी
का उदाहरण दिया जा रहा है। ए और बी दोनों समुद्र
में जाते हैं। एक अपने साथ एक खाली गिलास ले
जाता है और दूसरा एक बाल्टी। आप समझ सकते हैं।
किसे क्या चाहिए?

विश्वास:
विश्वास का संबंध आपके नजरिए से होता है।
जैसा कि प्रसिद्ध अमरीकी उद्योगपति हेनरी फोर्ड ने
कहा था कि यदि आप विश्वास कर सकते हैं तो भी
आप सही हैं या विश्वास नहीं कर सकते हैं तो भी
आप सही हैं। यह सब आप पर निर्भर करता है। 

   इसे हम इस कहानी से समझ सकते हैं। एक
लड़के ने एक संत को पराजित करने का मन
बनाया। इसके लिए उसने एक बेवकूफी-भरी योजना
बनाई। उसने सोचा कि में संत के पास हाथों में एक
पक्षी को लेकर जाऊंगा। चूंकि संत सभी कुछ जानते
हैं, इसलिए मैं उनसे पूछूंगा कि जो चिड़िया मेरे हाथ में
है वह जिंदा है या नहीं। यदि वे जवाब देते हैं कि
जिंदा है, तो मैं उसकी गर्दन दबा दूंगा। यदि वे कहते
हैं कि वह मर गई है, तो वे गलत साबित हो जाएंगे।
उसने अपनी योजना के अनुसार वैसा ही किया,
लेकिन संत उसकी चतुराई को समझ गए। उन्होंने
कहा कि इस पक्षी की दशा वैसी ही जैसा तुम चाहोगे।
ऐसा ही हमारी जिंदगी में होता है। जैसा हम चाहते हैं,
वैसा ही हमारा नजरिया बनता है और हम भी वैसे ही
बनते हैं।

अनिर्णय:
पसंद का संबंध हमारे कर्म से है। आप कभी भी
जीत नहीं सकते, यदि आप कोई शुरूआत न करें।
गीता में श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि अच्छा
या बुरा निर्णय सभी सही होते हैं, किंतु अनिर्णय
आत्मघाती होगा। इतिहास गवाह है कि अनिर्णय और
बिना कर्म के कई महान सपने हमेशा के लिए खत्म
हो गए। सफल होने के लिए जरूरी है कि आप सबसे
पहले आरामदायक स्थिति से बाहर आ जाएं। घर,
रिश्ते, नौकरी और आदतें सभी कुछ आरामदायक
होती हैं, किंतु अंत में सभी कुछ आपको मानों आगे
बढ़ने से रोकते हैं।

प्रयास
त्याग का मतलब है सभी कुछ समर्पित कर देना।
एक बालक एक पत्थर को हटाने का प्रयास कर रहा
था। बार-बार की कोशिशों के बाद भी वह सफल
नहीं हो सका। थके-हारे बेटे को देख रहे पिता ने
पूछा- 'क्या तुमने सारे प्रयास किए?' बेटे ने कहा-
'हाँ!' पिता ने कहा- 'मुझे लगता तो नहीं है, क्योंकि
तुमने मदद के लिए मुझसे नहीं कहा इस उदाहरण
को पढ़कर आप भी सोचिए, कि आप ईश्वर से मदद
मांग सकते हैं, क्योंकि उसी ने हमें बनाया हैं। फिर
उससे मदद मांगने में संकोच कैसा ? अपने सभी
प्रयासों में आपको उसे भी अपना भागीदार बनाना
चाहिए।

आनंद:
संपूर्ण आनंद जरूरी है। सामान्यतया हम कर्म
करते हैं और उसके बाद यदि परिणाम उम्मीद के
अनुसार नहीं मिले तो शिकायत करते हैं। जबकि यदि
आप थोड़ा भी हासिल करते हैं, तो उसका रोमांच कम
नहीं होता है। विद्वानों ने कहा है कि ऐसी स्थिति में हमें
अगले कार्य में जुट जाना चाहिए।

                                    ~*~




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